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Who are You आप कौन हो ..

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आप पैदा हुए।

दो शरीर के मिलन से।

आप एक उस अवस्था से जो पहले आपके पैदा होने से थी। जिसका आपको भान भी नहीं। अब आप पैदा हुए। अब इस संसार मे आये। आप अभी छोटे हो। मासूम हो। जो देखा जो सुना आपने पकड़ा। पर आप अभी कठोर ना हुए बातों को लेकर।

अभी एक नज़रिया नही बनाया। कुल मिलाकर कहूँ तो अभी आपकी एक पहचान नही। मूलतः जिसे आप अपनी आइडेंटिटी कहते हो।उसका पता नही। अब आप बड़े होने लगे हो अब आपको लगने लगा है कि आप एक लड़का लड़की या इससे इतर शारीरिक तौर पर  आप महसूस करने लगे हो। अब आप कठोर होने लगे हो। अब आपने एक दृढ़ भावना बना ली है। शरीर के तौर पर। जाती के रूप में। धर्म के रूप में। देशवासी के रूप में। समुदाय के रूप में। अब एक पैंठ बेथ चुकी है मन मे आपके।

अब आप अपने आप को इन सब बातों के माध्यम से अपने को व्यक्त करने लगे हो। आप अपने यह सब एक पहचान के रूप में आपसे जुड़ गया। पर आप वास्तव में कौन हो। आप यहां आते हो। सब कुछ आपको एक व्यवस्था के अंतर्गत दिया जाता है।

सारे रिश्ते नाम धर्म आदि। पर ये तो आप नहीं। क्या आपको पता चल पा रहा है कि आप के पैटर्न को जी रहे हो। जिसे कुछ हजार साल पहले व्यवस्तिथ किया गया है। जिसमें आपके धर्म जाती आदि को जोड़ दिया गया है।

क्या आप महसूस कर पा रहे हो कि आपकी वास्तविक पहचान क्या है। क्योंकि सब तो आपके आस पास वैसे ही है। आप एक बनी बनाई व्यवस्था के परिणाम भर हो बस इसके अलावा कुछ नही।

तो फिर कौन हो। क्यों आप इसी व्यवस्था से बांध कर जी रहे हो। आपने इसे स्वीकार भी कर लिया है। इसे इतना स्वीकार वो भी बेहोशी में। क्योंकि अलापने कभी खुद से पूछा ही नही। क्योंकि इसको आपने इतनी स्वीकृती दे दी। कि ये आपको सहज सा लगने लगा। पर अगर ये सब हटा दिया जाय तो फिर आप कौन हो।

आपका वास्तविक रूप क्या है। ऐसा तो नहीं आप खुद एक पैटर्न बन गए हो। इसे ही आपने जीवन मान लिया हो। यह सब हटा दिया जाए तो तब आप भावनाओं का जो कि प्रकृति है जिसमे जानवरों और आप मे केवल शारीरिक रूप रंग को छोड़ कर बाकी कुछ अंतर नही।

तो अभी आप यह पर यह आप तय कर पा रहे हो कि आपमे ओर जानवरों में कुछ समानता है। अब प्रश्न यह है कि वह क्या है जो आपको यह बता रहा है कि आपके अंदर जानवरों  जैसे कुछ समानता और असमानता है। और वह जो यह सोचने और बताने की क्षमता आपको दे रहा है वह कौन है।

और वह कौन है इस कौन  का स्तोत्र कहाँ से है।

आखिर यह सब कहाँ से विकसित हुआ है क्या वह हमेशा से वही था आपके पैदा होने से पहले क्या वह अजन्मा था क्योंकि अगर आप कहीं ना  कहीं आपने वास्तविक रूप को समझने की कोशिश कर पा रहे हो। इसका मतलब यह है वह आपके जन्म के पहले से था।

अगर ना होता तो आप यह सब बात ही ना पाते। अगर वो विचार है जो आपके के कालक्रम के विकसित होने का परिणाम है। तो फिर ये विचार स्वयं को स्वीकृति और अस्वीकृति क्यों दे रहे हैं अर्थात आप यह भी नही क्योंकि ये बदलते रहते हैं। तो फिर इनका स्रोत्र भी कौन। आखिर क्या ऐसा है जहाँ से यह  उपजा है।

इतना तो एकदम तथ्य है जो भी आपके सीमा के अंदर है वो आप बिलकुल भी नहीं हो। बिल्कुल भी नहीं। तो फिर आप कौन हो। आखिर आप एक ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत अपना समय काट देते हो। अपना जीवन काट देते हो। पर समय और जीवन भी क्या है।

अगर इसे आप परिभाषित कर पा रहे हो तो यह भी तथ्य नही हो सकते। क्योंकि यह भी बदला जा सकता है। इसका मतलब कुछ है जो अनुपजा होगा। क्योंकि सबको किनारे कर देने के बाद भी आप वहां तक नही पहुँच पाए हो क्योंकि आप अभी भी व्यक्त कर पा रहे हो यह शब्दों  जाल है। पर शायद उसका उत्तर मौन है। शायद मौन ही है। तो यह प्रश्न है कि आप कौन है।

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