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रिश्ता या आपसी संबंध

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किन्ही भी दो व्यक्तियों के बीच रिश्ता केवल एक मात्र भावनाओं का लेन देन नहीं ,अपितु ये आप दोनों के लिए एक ऐसे दर्पण का काम करता है जिसमे आप स्वयं की छवि देख सकते हो।

आपके संबंध दूसरों से किस प्रकार से बनते हैं आप की दिनचर्या उनके साथ किस प्रकार से गुजरती है ये आपकी ही छवि को प्रदर्शित करते हैं एक व्यक्तिगत तौर पर पर आप कैसे हो उसका प्रतिबिम्ब आपके दूसरों के साथ रिश्ते कैसे हैं यह प्रदर्शित करता है।

किन्ही भी संबंधों में प्रेम का होना केवल प्लेजर का आदान प्रदान नही बल्कि यह उस संबंध को बनाने में आप की वास्तविक प्रगति किस तरह से हो रही है यह देखना  है ,क्या आप मुक्त महसूस कर रहे हो या आप एक खुले एहसास को जी पा रहे हो।

अगर आप वास्तविक प्रेम संबंधों से जुड़े हो तो आप स्वयं भी उदय होने की औरों को भी उठाने में आगे बढ़ोगे। नहीं तो केवल एक समझौता भरा रिश्ता होगा और स्वयं आप सारा जीवन उलझन में जी डालोगे। फिर आगे जिस तरह से आप रिश्तों को निभाते हुए आगे बढ़ोगे तो ये केवल एक बोझ की तरह होगा जिसे आप बाद में जिम्मेदारी मान कर उस बोझ को ढोते रहोगे। और आप दूर भागने की कोशिश करोगे।

ये तो ऐसा होगा कि अंधेरे में साथ रहे क्योंकि डर था उलझन थी । और उजाला देख साथ छोड़ दिया। क्योंकि आपका व्यक्तिगत तौर पर तो अकेले हो। पर वास्तविक में आप भिन्न नहीं हो। और जब आप सशर्त प्रेम में नहीं बंधे हो। तब आप स्वयं आगे बढ़ोगे और दूसरों के लिए भी। क्योंकि तब आप मुक्त होंगे बोझ से। जब आप इस तरह व्यवस्थित होंगे इस तरह से तो आपके चारों ओर का तंत्र भी व्यवस्थित हो जायेगा।

क्योंकि आपके स्वयं की प्रणाली स्थिर गहरी और शांत है। तो भले ही आपके ऊपर ओर चीजों को वहन करने का दायित्व हो। पर आपको बोध हो स्वयं का की जो भी आप कर रहे हो करने जा रहे हो वह प्रेम पूर्वक ही है । ना कि केवल भौतिक ओर परसंतुष्टि के लिए । क्योंकि तभी आपके करने में आत्म संतुष्टि होगी और आप प्रसन्नता महसूस करोगे।

तो आपसी रिश्ते आपके एक गहराई के साथ संबंधित होने चाहिए। ना कि एक सामाजिक दायित्व भर के लिए। नही तो आप स्वयं से ही विलुप्त हो जाओगे। इसमें प्रभाव नही बल्कि प्रगाढ़ता होनी चाहिए। क्योंकि जब भी प्रभाव हो तो अपने शरीर और अपने विचारों को देखना शुरू कर दीजिए।कि परिवर्तन कैसा हो रहा है क्या यह बाधक तो नही बन रहा पर चेतनामय होकर दखिये ,केवल अपने कम्फर्ट के लिए नही मत दखिये।

अगर ऐसा रहा तो आप स्वयं अनन्त में गिर जायंगे। फिर दिशा और दशा दोनो ही हीन हो जाएंगी ।तो  स्वयं की स्तिथि को देखकर स्वउदय हो जाएं। और जीयो तो एक जंगल की तरह जिसमे हर प्रकार के जीव जंतु पेड़ पौधे हैं जो आपस मे संबंधित हैं यहां हर कोई उन्ही के समान है हर कोई जुड़ा है इतनी अराजकता है पर ये सब बाहरी तौर पर,  जैसे आपकी रोजमर्रा की गतिविधियां, आपका भौतिक जीवन । पर जंगल का पारिस्थितिकी एक दम स्थिर ,जो दिखाई न देता है पर केवल सूचकों के माध्यम से बताता है कि कितना सही और खराब चल रहा है।

जैसे आपकी दैनिक दिनचर्या, तो बगीचा ना बनो जो केवल बाहरी तौर पर सूंदर हो और उसे बनाये रखने के लिए आपको बार बार यत्न करना पड़े। और हर बार वह बिगड़ जाए आपका बाहरी आवरण तो बगीचे की तरह मुरझा जायेगा।अतः जंगल के eco system  को आप विकसित करो। जहां chaos भी भरपूर है आप जीवन के बाहरी आवरण की तरह। पर आंतरिक रूप से सब व्यवस्थित और उसके साथ सारा chaos भी पूरा व्यवस्थित।

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