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PANCHESWAR DAM: THE FUTURE DESTRUCTION OF HIMALAYAN

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शुरुआत करने के लिए हमेशा की तरह शब्दों की कमी पड़ रही है पर सच्चाई यह है कि हम सब भाग रहे हैं,

पर भागते भागते हम कई चीजों को पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं जो कि शायद हमें पता होनी चाहिए  यकीनन शीर्षक का नाम पढ़ने के बावजूद कई लोगों को इस परियोजना का पता नहीं होगा पर उत्तराखंड में बहुचर्चित टिहरी डैम के दर्द अभी भरे भी ना थे कि सरकारों द्वारा विकास की नयी तथाकथित मोहर उत्तराखंड को मिलने जा रही है !

और मैं दावा कर सकता हूं कि  लेख के अंत में यक़ीनन  आप के पास सिर्फ परियोजना की जानकारी उसके तथाकथित लाभ और हानि के अतरिक्त आप के पास सिस्टम से कई सवाल, पर्यावरण संस्कृति ,परम्परा, आपसी सम्बन्ध, हिमालय के अंश जैसे कई  तथ्य  होंगे. जो की आप को सोचने पर मजबूर कर देंगे !

परियोजना का नाम है पंचेश्वर डैम जो कि भारत और नेपाल सरकार का एक साझा प्रोजेक्ट है  और 5040 मेगावाट क्षमता का और 315 मीटर ऊंचाई के साथ रूस के रोगउन बांध के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा बांध होगा

जो कि उत्तराखंड के चंपावत जिले में बहने वाली महाकाली नदी पर बनेगा! इस विनाशकारी परियोजना का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस परियोजना का डूब क्षेत्र टिहरी के डूब क्षेत्र का लगभग 4 गुना होगा जिसमें कि उत्तराखंड का 7601 हेक्टेयर और नेपाल का 4000 हेक्टेयर इलाके डूब क्षेत्र में सम्मिलित होगा !

पंचेश्वर डैम परियोजना का इतिहास

पहली बार 1962 में परियोजना को चिन्हित किया गया था  और फिर 1996 में भारत और नेपाल में महाकाली जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए पर इस परियोजना को चिन्हित करने के साथ-साथ ही परियोजना का उत्तराखंड और नेपाल में भारी विरोध शामिल रहा पर लगभग 18 साल बाद 2018 में नई सरकार ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया और परियोजना को भारत और नेपाल की दोस्ती बताया !

 परियोजना का स्वरूप

  • परियोजना में बनने वाली झील लगभग 116 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली होगी तथा जिसकी लंबाई लगभग 90 किलोमीटर होगी !
  • झील के अतिरिक्त, परियोजना में लगभग 6 टनल 2 पावर हाउस और 1200 मेगावाट क्षमता की चार टरबाइन भी होगी !
  • एक अनुमान के अनुसार परियोजना की की लागत 34,108 करोड़ आंकी गई है  तथा परियोजना को बनने में लगभग 8 साल तक का समय अनुमानित है तथा इसी परियोजना के सेकंड फेज में 25 किलोमीटर बाद 81 मीटर ऊंचाई का रुपाली गांठ बांध बनेगा जिसकी क्षमता 240 मेगावाट होगी!

परियोजना के तथाकथित लाभ

परियोजना के तथाकथित लाभो  में बताया गया है कि इस परियोजना से 4800 मेगावाट बिजली के साथ-साथ भारत में लगभग 2.59 लाख हेक्टेयर और नेपाल में 1.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी !

 परियोजना के नुकसान

परियोजना के नुकसान इतने बड़े हैं कि जिन को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है पर आगे की डीपीआर और EIA रिपोर्ट के तथ्यों से आपको थोड़ा-थोड़ा अंदाजा होने लगेगा

 डीपीआर (DPR) एक सवालिया निशान

 डीपीआर का अर्थ होता है डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट सर्वप्रथम 1995 में डीपीआर रिपोर्ट को पेश किया गया तथा डीपीआर में जिक्र किया गया की इस परियोजना से उत्तराखंड के 122 गांवों के 29000 परिवार विस्थापित होंगे तथा नेपाल के कई गांव के कई हजारों लोग विस्थापित होंगे तथा विस्थापितों में 60% भारतीय तथा 33% नेपाल के लोग होंगे जबकि जानकारों की मानें तो विस्थापितों का आंकड़ा कई गुना हो सकता है क्योंकि यह डीपीआर काफी पुराने सर्वे तथा जानकारी पर आधारित है

 डीपीआर में भूमिहीन लोगों के पुनर्वास की योजना का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है

 ईआईए (EIA) रिपोर्ट हमारे लचर सिस्टम का एक उदाहरण

EIA  रिपोर्ट का पूरा नाम एनवायरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट रिपोर्ट होता है तथा किसी भी बांध ,परियोजनाओं को बनाए जाने से पहले उसका पर्यावरण पर क्या असर होगा यह सभी जानकारियां इस रिपोर्ट में सम्मिलित की जाती हैं पर यह रिपोर्ट हमारे सिस्टम पर कई सवाल खड़े करती है

इस रिपोर्ट को केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा मंत्रालय के तहत आने वाले संस्थान WAPCOS ने तैयार किया है जबकि नियम के अनुसार  यह रिपोर्ट किसी निष्पक्ष तथा स्वतंत्र और तीसरी संस्था द्वारा तैयार की जानी चाहिए थी

 

कई एजेंसियों द्वारा ईआईए (EIA) रिपोर्ट में कई खामियां को बताया गया जिसमें निम्न सम्मिलित है

ईआईए (EIA) रिपोर्ट की खामियां

EIA रिपोर्ट के तथ्य   वास्तविक तथ्य
EIA रिपोर्ट में महाकाली का उद्गम 7820 मीटर की ऊंचाई पर लिपुलेख ग्लेशियर बताया गया है  जबकि लिपुलेख के उत्तरी और दक्षिणी ढाल पर कोई ग्लेशियर नहीं है  
EIA रिपोर्ट  के अनुसार महाकाली नदी के जल ग्रहण इलाके में एक ही हाइड्रो प्रोजेक्ट की बात की गई है  जबकि इस कैचमेंट एरिया में 41 छोटे मध्यम बड़े प्रोजेक्ट प्रस्तावित है या निर्माण के अलग-अलग स्तर पर है  
  EIA रिपोर्ट में  प्रभावित इलाके में 193 प्रजाति की वनस्पतियों का जिक्र किया गया है  जबकि अकेले गौरी नदी के बेसिन में 2359 प्रजाति की वनस्पतियां है  
EIA रिपोर्ट में महाकाली बेसिन में मछलियों पर खास रिसर्च नहीं की गई है  जबकि महाकाली में मछलियों की कम से कम 124 प्रजातियां है  
EIA रिपोर्ट में  महाकाली बेसिन में बाघों, गुलदार और गोराल का खास जिक्र नहीं किया गया हैजबकि बेसिन में भारी संख्या में बाघ गुलदार और गोराल मौजूद हैं
EIA रिपोर्ट में किंग कोबरा, इंडियन रॉक पाइथन, वाइट लिप्ट  पिट  वाईपर का जिक्र नहीं है  जबकि डूब क्षेत्र में ऐसे सरीसृप जीवों की भारी संख्या है  
EIA रिपोर्ट में फूल, औषधीय वनस्पतियों का कोई जिक्र नहीं किया गया हैजबकि बेसिन में भारी संख्या में फूल, औषधीय वनस्पति मौजूद है
EIA रिपोर्ट में प्रभावित इलाके में 193 प्रजाति की वनस्पतियों का जिक्र किया गया है  जबकि अकेले गौरी नदी के बेसिन में 2359 प्रजाति की वनस्पतियां है  

Source Via Sandrp / Internet

आप ऊपर दी गई इस रिपोर्ट को पढ़कर अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारा सिस्टम कितना कमजोर है और सवालिया निशान तब ज्यादा खड़े होते हैं जब यह पता चलता है कि यह EIA रिपोर्ट विश्व के दूसरे सबसे ऊंचे बांध से संबंधित है

बांध से होने वाले तथ्यात्मक नुकसान

  • उदाहरण के तौर पर टिहरी बांध की झील के अंदर और ऊपर की ओर पानी रिसने की वजह से एक बड़ा इलाका धीरे-धीरे दरकता जा रहा है यानी यहां रिजरवायर रिंग स्टेबिलिटी अत्यंत कम है जो कि पंचेश्वर डैम  के विषय में और कम होगी
  • बांध मुख्यता विकराल महाकाली नदी पर बन रहा है जो कि बरसात में सिर्फ अपने साथ पानी ही नहीं बल्कि ग्लेशियर का सेंटीमेंट और मूरीन भी अपने साथ लाती है जो कि बांध में गाद भर कर उसकी उम्र कम करेगा
  • पूरा हिमालय इलाका भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है और ऐसे इलाके पर बांध बनना तकनीकी दृष्टि से भी ठीक नहीं है, उदाहरण के तौर पर कोयना डेम को लिया जा सकता है जिसको की कोयना क्षेत्र में 1967 में आई भूकंप का मुख्य कारण माना जाता है

          अब तो यह सिद्ध हो गया है कि कोयना बांध की झील ही भूकंप का मुख्य कारण थी जो पंचेश्वर डैम को सीख देती है

  • आपको जानकर हैरानी होगी की पंचेश्वर डैम कोयना डैम से लगभग 4 गुना ज्यादा बड़ा होगा और पंचेश्वर डैम भूकंप की दृष्टि से जून 4 में पड़ेगा
  • 2010 में एक इंटरनेशनल संस्था इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंटल साइंस के वैज्ञानिक मार्ग अवार्ड के अनुसार यदि महा काली घाटी के परिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन किया जाए तो बांध की लागत लाभ से कई गुना अधिक होगी
  • बांध से होने वाले तथाकथित लाभ में 9116 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होने की बात की गई है जबकि जानकारों की मानें तो पंचेश्वर डैम से उत्पादित होने वाली per यूनिट की कॉस्ट 6 से ₹8 होगी और वर्तमान की दृष्टि से बिजली बाजार में ₹3 यूनिट से ऊपर के दामों पर बिजली का कोई खरीददार नहीं है जिसके चलते कई परियोजनाएं ठप पड़ी है
  • बांध को बनाने का मुख्य कारण बाढ़ पर काबू पाना बताया गया है जबकि जानकारों के अनुसार बाढ़ नदियों के निचले इलाकों के इकोसिस्टम को नया जीवन देते हैं और बांध बनने से यह इकोसिस्टम पूर्ण तरह प्रभावित होगा
  • यहां भारत की सीमा में पीलीभीत टाइगर रिजर्व,  किशनपुर वाइल्डलाइफ सेंचुरी, कतरनिया घाट,

वाइल्ड लाइफ सेंचुरी दुधवा टाइगर रिजर्व जैसे इलाके हैं और नेपाल में शुक्ला फाटा वाइल्डलाइफ रिचार्ज और वाडिया नेशनल पार्क है जिन पर भी डैम का विपरीत असर पड़ेगा

 मेरी निजी राय

 यकीनन विकास करना सही है पर विकास करने का तरीका गलत है तथा हमें इसका आकलन करना भी जरूरी है कि हमें विकास की क्या कीमत चुकानी होगी और जब तक सरकार और तमाम अधिकारी जो मैदानी क्षेत्रों में बैठकर पहाड़ों के फैसले लेंगे विकास की क्या कीमत चुकानी होगी उसका आकलन कभी नहीं किया जा सकता है

 यकीनन तथाकथित डीपीआर (DPR) और EIA रिपोर्ट में तमाम प्रभावित होने वाले तथ्यों को उल्लेखित किया गया है पर डीपीआर और ईआईए रिपोर्ट में परियोजना में खत्म होने / प्रभावित होने वाले इतिहास, हमारी विरासत सामाजिक परंपरा, हमारे आपसी संबंध आपके रिश्ते, संस्कृति,  लगावो आदि का कभी आकलन नहीं किया जा सकता है और सरकार द्वारा मिलने वाले मुआवजे से भी इसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती है

 मसला बहुत बड़ा है पर इस को सुलझाया जा सकता है

 भारत सर की एक बात याद आती है क्यों ना हम बड़ी बड़ी परियोजनाओं के बदले छोटे छोटी परियोजनाओं से और वैकल्पिक तरीकों से ही निर्धारित लक्ष्य को पूरा करें

 2013 में आने वाली आपदा और हाल ही में रेणी  गांव में आई आपदा इस सवाल को और पुख्ता कर देती है कि हिमालय क्षेत्र में बहने वाली नदियों को कब तक बड़े-बड़े डेमो में बांधना कितनी हद तक सही है

 जब-जब उत्तराखंड में बड़ी बड़ी परियोजनाओं का जिक्र होगा तब तक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को याद किया जाएगा कि कैसे  ये सभी परियोजनाऐ हिमालई क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है

 बहुत दुख होता है जब मैं खुद वर्तमान में अपनी इंजीनियरिंग को ऐसे ही किसी प्रोजेक्ट में कंट्रीब्यूट कर रहा हूं

 यकीनन अंत में मुझे उम्मीद है कि भले ही आप को  कुछ नया सीखने को ना मिला हो पर आपको लेख ने कुछ सवालों को सोचने पर मजबूर जरूर किया होगा

लेखक महावीर रावत है..इंजिनीरिंग के विद्यार्थी है

 नोट… परियोजना से संबंधित जानकारियों को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया गया है लेखक लेख से संबंधित तथ्यों की सत्यता और विश्वसनीयता का दावा नहीं करता है

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