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What I Think for Life

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यदि भारत के हर बच्चे के राष्ट्रीय सपने की बात करे तो वो है IIT औऱ IAS और यही हर माँ-बाप की अपने बच्चों से राष्ट्रीय उम्मीद..

मेरी बदकिस्मती यह थी कि मैं ना तो अपना यह सपना पूरा कर पाया और ना ही घर वालो की राष्ट्रीय उम्मीद,इनफैक्ट मैंने तो IAS को अपनी पकड़ से बाहर मानकर कभी तैयारी करने तक का नही सोचा, जोश जोश में एक बार IIT की तैयारी 2008 के जरूर शुरू की थी..मेरी कहानी शुरू होती है ,उस सरकारी इंटर कॉलेज से जहाँ कोई क्लास ही गोल कर देना। (बंक मारना जिसे कहते है,ऐसा मुझे B. Tech में आकर पता चला) हमारा प्रतिदिन का काम होता था,सुबह सुबह अखबार को ऐसे चाटना जैसे बोर्ड का पूरा पेपर इसी अखबार से आयेगा ,किसी चीज को समझना और रटने में रत्ती भर का फर्क होता है,और शायद मेरे लिये रटना बहुत आसान काम था, सो रट रटाकर 2008 में इंटर में 80 प्रतिशत नम्बर ले आये,गणित और फिजिक्स में तो 90 % से ऊपर,इलाके में वाहवाही शुरू हुई.

उसी साल AIEEE(जिससे NIT में Engineering के एडमिशन होते है) दिया ,एक दम चौड में आकर पेपर फाड़ने गया तो नम्बर आये माईनस 4 और आल इंडिया रैंक 6 लाख जबकि 9 लाख बच्चों से पेपर दिया था,बोर्ड के नम्बर देखकर बहुतों ने सुझाव दिया जाकर IIT की तैयारी करो,तो देहरादून आकर एक नामी कोचिंग में एडमिशन ले लिया,पढाई के साथ साथ बैच की एक कन्या को दिल दे बैठा,उम्र महज 17 साल ,बाजार में जो कोई पूछता उसे बताता IIT की तैयारी कर रहा हूं,और किताब के नाम पर कोचिंग वाले टीचर को ना पूछकर सीधा दुकानदार से पूछा IIT की कोई अच्छी सी किताब दे दो,दुकानदार भी अच्छे मार्जिन के चक्कर मे सन 2008 में 1300 ₹ में दो किताबे एक फिजिक्स की और एक कैमिस्ट्री की पकड़ा दिया,बोला ये पढ़ लो IIT हो जाना पक्का है।

साल आते आते ना तो IIT निकला और इस बार AIEEE में रैंक आई 3 लाख ,दूर दूर तक कोई भी सरकारी कॉलेज तो बहुत दूर प्राइवेट कॉलेज भी मिलना मुश्किल था, प्राइवेट कॉलेज उस समय लगभग 5 से 10 लाख तक डोनेशन लेते थे, एडमिशन के नाम पर,खैर इन सबके बीच सोचा क्यों ना किसी नेताजी की सहायता लेकर कोई जुगाड़ लगाया जाये, इतना समझ आया नेताजी मतलब फिरकी ही होता है। ये हथियार भी नाकामयाब रहा

किस्मत ये अच्छी थी उसी साल उत्तराखंड में लगभग 15 नये इंजीनियरिंग कॉलेज खुले ,तो एक प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन मिल गया,ब्रांच के नाम पर हमारे लिये Electrical या Electronic एक ही थी ,बस किस्मत ये अच्छी रही कि दोनों को एक जैसा ही जानकर ,बस बिजली को ध्यान में रखकर Electrical को पहले बोल दिया,औऱ Electrical मिल ही गई।

कॉलेज का पहला दिन इंजीनियर बनने के सपने की शुरुआत कर रहा था,जहाँ अब ये जान लिया था एक आइडियल लाइफ होती है और एक प्रेक्टिकल लाइफ। जहाँ IIT सपना था और प्राइवेट कॉलेज वास्तविकता ,

रटने की आदत अभी तक भी नही छुटी,2 साल पूरे हो गये और अभी तक 75% नम्बर आ रहे थे,तीसरा साल आते आते उड़ना शुरू हो गया औऱ सीधा 65 % पर आकर लटक गये,और फिर तीसरे साल समर ट्रेनिंग के लिये जुगाड़ से THDC चला गया,उधर जाकर जब IIT से लेकर NIT और पंतनगर से लेकर VIT के बच्चे दिखे फिर पता चला हम तो बहुत बड़े अंधेरे में है,चौथे साल देहरादून में फिर GATE की तैयारी शुरू करी ताकि BTech ना सही MTech तो किसी IIT से करनी ही है।

कॉलेज के एक दो सीनियर तब तक IIT में पहुँच चुके थे। तो अपने को अभी अपनी उम्मीद जैसी कुछ लग रही थी,बिल्कुल अच्छे से मेहनत करी,चीजो को रटने से ज्यादा अब समझने पर जोर दिया और नतीजा GATE में आल इंडिया रैंक 3 हजार आ गई,लेकिन इस रैंक में IIT मिलना मुश्किल था मगर कोई न कोई NIT जरूर मिल सकता था,मार्च 2013 में Gate का रिजल्ट आया और अप्रैल 2013 में कॉलेज से ही 4 लाख रुपये के पैकेज पर अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट हो गया। M Tech का सपना छोड़ सीधा 22 साल की उम्र में नौकरी को प्राथमिकता दी,उस लिहाज से उस समय पर 30000 वेतन मिलना भी मेरे लिये एक सपने जैसा निकला।

सोचा अब JOB के साथ ही IIT से M.Tech का सपना जरूर पूरा करना है। लेकिन अगले 3 साल मेहनत करते करते कभी भी यह सपना पूरा नही हो पाया बस सपना सपना ही रहा, इसी बीच साथ के बहुत से दोस्त भी IIT से M.Tech करने लग चुके थे,आखिर में साल 2015 में पार्ट टाइम में IIT रुड़की में पावर सिस्टम में एडमिशन हो हो गया,लेकिन उसी साल MHRD ने फीस बड़ा दी तो 25000 वाली फीस 1 लाख प्रति सेमेस्टर हो गई तो इस बार पैसे की वजह से एड्मिसन नही लिया, हाँ मगर अपना पहला सपना जो IIT में एडमिशन मिलने का था, वो जरूर पूरा हो गया था☺️

पहला सपना इतनी देर में सच हुआ कि उसके बाद दूसरा राष्ट्रीय सपना IAS देखने की कभी हिम्मत ही नही हो पाई.साल 2016 आते आते राज्य में इंजीनियर की भर्ती आई,2 माह तैयारी के लिये कम्पनी से मेडिकल के नाम भूमिगत रहा और सरकारी इंजीनियर बन गया.जब लाइफ को रिवर्स मोड़ में देखता हूँ तो समझ आता है,एक सपना होता है एक हकीकत होती है। सपने देखना और उसे पूरा करना मेरे हिसाब से बस किताबों की बात होती है।रियल जिंदगी में नही ,आज मैं अब जीवन को बस समझता हूँ, ना तेज भागने का शौक पालता हूं, और ना कोई सपना देखता हूँ।

कभी किसी भी अनजान रास्ते मे घूमने निकल जाता हूँ ना कभी मंजिल का ध्यान दिया बस रास्तों के सफर का आनन्द लिया..और मज्जे की बात मैं आज लाइफ से बहुत खुश हूँ, ऊपर वाले ने इतना ज्यादा दिया जितना कभी सपने में भी सोचा नही था..जिंदगी मतलब IIT और IAS नही है उससे भी बहुत आगे है जिंदगीखैर मैं आज भी एक सपना देखता हूँ कि कभी एवरेस्ट की उस चोटी को फतह करूं,और उस जगह खड़े होकर एक बार पूरी दुनिया को देखूं.हालाकि इसका जब खर्च टटोला तो 35 लाख के करीब आ रहा है,जो कि मेरे बस से फिलहाल बाहर है..☺️

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2 thoughts on “What I Think for Life”

  1. Mukesh Kumar says:

    Great

  2. Gruhil Dudhat says:

    Very nice sir, your story is one of the biggest motivational story for us and your lifestyle, dreams and vision is really inspired for me.

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