"पढ़ लिख कर बना मैं अनपढ़"
कभी बैठे हुए अकेले विचार करो ,तो पाओगे की हमारा क्या किसी पर अधिकार है क्या कुछ ऐसा है जो आपसे सम्बन्धित है बिल्कुल नही, पर फिर सोचोगे तो क्या है फिर ,पाओगे हम सब प्रकृति की गोद में बच्चों की तरह है ।
कभी देखा है आपने छोटों बच्चों को जो किसी Toyshop पर जाते हैं और खुश हो जाते है और हर एक खिलोने के साथ खेलते हैं ऐसी ही प्रकृति है सब दिया है मुफ्त में कोई मूल्य भी नही लिया, बस आपको इतनी सारी विवधता को देखना है अंदर से और देखना आपका अनुभव बच्चों की तरह होगा एकदम मस्तमद, पर तहें जो आपने लगाई है तुलना की, आसक्ति की, दुख की,नफरत की इससे आप सब कुछ खोते जा रहे हो पीछे छूटते जा रहे हो।
यह जीवन आपका है आपको देखना होगा कि क्या घटित हो रहा है यहाँ, हर कोई ना कोई आएगा कह के चला जायेगा, ये तय आपको करना है आपको निरीक्षण करना है कि क्या चयन करूं जो जीवन मे संवृद्धि आये। जो स्वयं से द्वंद में है संदेह में है वो अर्जुन की स्तिथि में है कृष्णा की तलाश में है। जो नही वो जड़ है अभी, यहाँ आपका किसी पर कोई अधिकार नहीं कोई अनंत संबंध नही, तो तब भी क्या हक जताओगे, हर किसी पर हक जताना भी तो शोषण है, यहाँ अगर आप किसी के प्रभाव में हो तो आप उस व्यक्ति की इच्छा को संतुष्ट कर रहे हो।
जब जब प्रश्न करना छोड़ दोगे तब तब स्वयं को रोक दोगे, क्षितिज का विस्तार ना हो पायेगा। किसी चीज़ का घटित होना केवल क्रियाओं का परिणाम है जो क्षण प्रतिक्षण बदलता रहेगा। यहाँ आप केवल जुड़ सकते हो, केवल जुड़ाव ही संभव है यहाँ, आप यहाँ कुछ अलग उत्पन नही कर सकते इतनी शक्ति मानव में कहाँ। तो फिर क्या, बस इतना कि आपसे यहाँ कुछ भी अलग नही कुछ सब एक चक्र में जुड़े हैं किसी को भी खुद से अलग मान लेना स्वयं को जड़ स्तिथि में ले जाना होगा। जब हम ये जुड़ाव महसूस कर लेते हैं तो आप स्वयं सलंग्न हो जाओगे बेहतर करने में बिना किसी इच्छाओं के, आप स्वयं जान जाओगे की कितना और क्या जरूरी है, तब आप सूंदर व्यवस्था व्यवसिथत करने में लग जाओगे यह किसी भी रूप में हो सकती है किसी भी क्षेत्र में बस होगी तो बेहतरी के लिए, संवृद्धि के लिए क्योंकि तब आप समझ जाओगे की यहां जब कोई अधिकार नहीं तो कोई आसक्ति भी नही, जब आसक्ति ही नहीं तो स्वार्थपरता नही, जब स्वार्थपरता नही तो सब कार्य सुकून से। तो आप यहाँ बस प्रकृति के अलग अलग रूपों को जानोगे, जड़ पदार्थ से लेकर , जीव वृक्ष और स्वयं को भी।
जब आप प्राकतिक ढंग से जीना शुरू करेंगे तो आप एक बच्चे होंगे प्रकृति की गोद मे जहां आप ढेर सारे खिलौने भी बनाओगे और ढेर सारा जीवन विवधता भी देखोगे। और जब तक आप प्रकृति की दया पर निर्भर हो तब तक आप सुरक्षित हो। और जब आप पंक्ति से हटोगे तो एक समय बाद आप अलग थलग हो जाओगे तब सोचोगे की क्यों इस प्रकृति (शक्ति) की गोद से अलग हुआ।