"पढ़ लिख कर बना मैं अनपढ़"
हम सब ये जिंदगी दोहरे मापदंड के साथ जीते है और बहुत बड़े भ्रम के साथ जीते है।ठीक उसी तरह जैसे दीवार में लगी हर ईंट को ये लगता है कि सारी दीवार उस पर ही टिकी है,लेकिन असल में ठीक इसी का उल्टा होता है।बस ऐसे ही कुछ भ्रम हम सब जाने अंजाने में अपने दिलोदिमाग में बैठा देते है,और खुश होने लगते है।और बहुत बार इस मापदण्ड के कारण स्वीकार कर लेते है कि मेरे बिना यह काम हो ही नही सकता,केवल मैं ही हू जो यह काम कर सकता हूँ, और फिर धीरे धीरे घमण्ड आने लगता है और आत्ममुग्धता देख फुले नही समाते।फिर एक दिन अचानक के कुछ काया पलट होती है और सारा का सारा भ्रम टूटकर सिर के बल गिरता है,और जिसे आप यह समझ बैठते हो कि यह काम केवल आप ही कर सकते वो वह केवल इसलिये चूंकि आप खुशकिस्मत होकि आपको इस काम की जिम्मेदारी मिली है,जिस दिन किसी और को मिलेगी देखना वो इसे आपसे और अच्छे तरीके से निभायेगा।ये जिन्दगी है मेरे दोस्त, आपके रुकने से ये थम नही जायेगी,उल्टा जिस दिन आप रुकोगे ये उस दिन दुगुनी तेजी से आगे बढ़ेगी.तो छोड़े ये सब भ्रम,केवल अपना Best दो,ये जिंदगी दुबारा नही लौट कर आती.